equal msp disability pension time bound promotion movement of jawan: जैसा कि हम सब काफी समय से देख रहे हैं भारतीय सशस्त्र बल के अधिकारी और जवानों के बीच वेतन और भत्तों तथा पेंशन में काफी समय से भेदभाव चल रहा था इसलिए सरकार की इस नीति के विरोध में रिटायर्ड जवान तथा जेसीओ आंदोलन कर रहे थे ।
भारतीय सेना नौसेना और वायु सेना में जवानों ने अधिकारियों के साथ मिलिट्री सर्विस पे की मांग की है। क्योंकि उनका मानना है कि वह अपनी सेवा और बलिदान के लिए समान एमएसपी के हकदार हैं। एमएसपी एक एक्स्ट्रा पेमेंट होती है जो सैनिकों को मूल वेतन के अलावा दी जाती है।

जैसा कि हम सब जानते हैं सैनिकों का जीवन कितना कठिनाइयों भरा होता है। सैन्य सेवा में शामिल सैनिक अपने मूल वेतन से अपने परिवार का भरण पोषण कई बार ठीक तरह से नहीं कर पाते। अपनी जिंदगी को दांव पर लगाने वाले हमारे सैनिकों को परिवार को एक आत्मनिर्भर जीवन तथा सम्मान पूर्वक जीवन देने के लिए पिछले कई समय से सैनिक तथा अन्य कर्मचारी एमएसपी की मांग कर रहे हैं। यह MSP सैन्य सेवा में शामिल सैनिकों को कठिनाई और जोखिम का सामना करने के लिए दिया जाता है।
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समान MSP की मांग क्यों उठी?
फिलहाल बता दें कि समान एमएसपी की मांग इसलिए उठी क्योंकि अधिकारियों और जवानों को मिलने वाली एमएसपी में काफी ज्यादा अंतर पाया गया था। पहली बार जब सीपीसी में एमएसपी की बात की गई तो अधिकारियों के लिए यह राशि ₹5500 थी तथा सूबेदार और मेजर और जेसीओ जवानों के लिए यह राशि केवल ₹2000 थी । सैन्य सेवा के जोखिमों और कठिनाइयों का सामना दोनों ही रैंक के जवानों को बराबर रूप से करना पड़ता है।
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सैन्य सेवा में चाहे मेजर हो या चाहे सूबेदार अथवा कोई उच्च अधिकारी सब को जान का खतरा बराबर होता है। ऐसे में सैन्य सेवा में जोखिम और कठिनाइयां समान रूप से होने के बावजूद उच्चाधिकारियों को एमएसपी की अधिक राशि प्राप्त हो रही थी, जबकि जवान और सुधारों को इसकी राशि बेहद ही कम दी जा रही थी ।
इसीलिए जवानों ने भारतीय सरकार को यह तर्क दिया है कि जवान ही सेना की रीढ़ है क्योंकि वही अग्रिम पंक्ति में हमेशा होते हैं । सबसे ज्यादा उनकी जान की बाजी लगती है इसीलिए सैन्य सेवा में सेवा और बलिदान के लिए समान एमएसपी होनी चाहिए।इस प्रकार की असमानता अनुचित और अन्याय पूर्ण है ।
जवानों द्वारा समान MSP के लिए Court केस
काफी लंबे समय से उठ रही इस मांग को समय-समय पर जवानों ने उठाया है। हालांकि पिछले कुछ समय में इस मुद्दे ने कुछ जोर पकड़ा है मगरफिलहाल अभी भी इस मुद्दे को घोषणा बनने में एक लंबा रास्ता तय करना होगा। परंतु उम्मीद यही जताई जा रही है कि जल्दी समान एमएसपी लागू किया जाएगा ।
आपकी जानकारी के लिए बता दें समान एमएसपी की मांग को लेकर वृद्ध जवानों ने दिल्ली उच्च न्यायालय में एक मुकदमा चलाया है। जिसकी सुनवाई काफी लंबे समय तक समय से चल रही है । इसके चलते 20 फरवरी को जंतर-मंतर पर प्रदर्शन भी किया गया। इसके अलावा एमएसपी ही नहीं कमीशन अधिकारियों के मामले में अन्य कई मुद्दे उठाए गए जैसा कि कमीशन अधिकारियों की पदोन्नति time–bound तय की जाती है क्योंकि केवल 3 साल की सेवा के बाद उन्हें कैप्टन 6 साल की सेवा के बाद मेजर 13 साल की सेवा के बाद लेफ्टिनेंट कर्नल तथा 17 साल की सेवा के बाद में कर्नल डीएस आदि की पदोन्नति मिलती है।
वही जवानों के मामले में ऐसी कोई पदोन्नति नहीं होती जिसके परिणाम स्वरूप 17 साल की सेवा के बाद भी जवान सिपाही ,सिपाही के पद से ही सेवानिवृत्त होते हैं और उन्हें काफी कम पेंशन मिलती है । साथ ही साथ केवल 40 वर्षों में उन्हें रिटायर कर दिया जाता है और आजीविका के लिए उनको उपलब्ध कराई जाने वाली पेंशन भी अपर्याप्त होती है ।
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काफी समय से orop की मांग
इसीलिए काफी समय से orop की मांग भी तेजी पकड़ रही थी हालांकि कमीशन अधिकारियों के लिए orop का लाभ काफी बेहतर कर दिया गया है परंतु जवानों के मामलों में अब तक कोई वृद्धि देखने को नहीं मिली है। वही हाल डिसेबिलिटी पेंशन में भी देखा गया है।
अफसरों और जवानों की disability pension में भारी अंतर
जवानों के लिए विकलांगता पेंशन 5000 से 6000 है ,जबकि अधिकारियों को इसकी 40 से 50 हजार तक की पेंशन मिलती है। इसी के चलते 20 फरवरी को जंतर मंतर पर काफी बड़ा आंदोलन किया गया तथा कहा जा रहा है कि 12 मार्च को फिर से इन मुद्दों पर एक और आंदोलन किया जाएगा। फिलहाल उम्मीद तो यही जताई जा रही है कि भारत सरकार जवानों के नैतिक मूल्यों का ख्याल रखते हुए उनके हित में कोई बड़ा फैसला जरूर लेगी।
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